डेव एगेर्स का वर्ष 2013
में
प्रकाशित उपन्यास "द सर्किल" बगैर किसी निजता के अमेरिका के जीवन का चित्रण उकेरता है, जहां एक महाकाय, इंटरनेट पर आधारित, मल्टीमीडिया कंपनी अपनी
सर्वेक्षण तकनीक के माध्यम से अपने यूजर्स के जीवन को पूरी तरह से नियंत्रित करती
है और अंततः कंपनी का संस्थापक कालडेन गोपनीयता से जुड़े एक बड़े खतरे को भांपते हुए
खुद ही उहापोह की स्थिति में फंस जाता है. यूरोपियन संसद के बेल्जियम सदस्य और
अलडे ग्रुप के अध्यक्ष गाए वेर्होफ्स्ताद्त के अनुसार वर्तमान
में मार्क ज़करबर्ग उसी कालडेन का यथार्थ स्वरुप नजर आ रहे हैं, जो वर्ष 2013 से लगातार अपनी कंपनी की बड़ी बड़ी गलतियों के लिए माफ़ी
मांगते नजर आते हैं.
तर्कसंगत भी है, एक बड़ा नाम व रूतबा, भीमकाय जिम्मेदारियों को भी
अपने साथ तोहफे में लेकर आता है और यदि आप उनसे पीछे हटते हैं, तो आपकी पहचान केवल एक मजाक
बन कर रह सकती है. ऐसा ही कुछ आजकल
फेसबुक फाउंडर ज़करबर्ग के साथ हो रहा है, आज उन्हीं की बनाई
मनोरंजनात्मक साइट्स पर उन्हें अपने गैर जिम्मेदार रवैये के लिए ट्रोल किया जाना
आम हो गया है. यूरोपियन संसद के सामने कैंब्रिज डेटा प्रकरण के लिए दिया गया उनका
रटा रटाया बयान बहुत से इंटरनेट यूजर्स, डिजिटल विशेषज्ञों, मीडिया कार्यकर्ताओं, प्राइवेसी कार्यकर्ताओं, यहां तक कि यूरोपियन संसद
के बहुत से सदस्यों की आँखों में किरक रहा है.
ब्रिटिश परामर्शदाता कंपनी
कैंब्रिज एनालिटिका द्वारा बिना किसी जानकारी के 2016 के अमेरिकी राष्टपति चुनाव अभियान के दौरान
मतदाताओं को डोनाल्ड ट्रम्प के पक्ष में प्रभावित करने के उद्देश्य से 87 मिलियन फेसबुक यूजर्स के
डेटा में सेंध लगाई गयी थी. इनमें तकरीबन 1 मिलियन ब्रिटिश यूजर्स का निजी डेटा भी सम्मिलित
था. हाल ही में कैंब्रिज एनालिटिका के कथित डायरेक्टर क्रिस्टोफर वाईली
द्वारा दिए गये वक्तव्यों ने भी सम्पूर्ण विश्व की लोकतांत्रिक व्यवस्था की जड़ को
हिला कर रख दिया. उन्होंने स्पष्ट किया कि कैंब्रिज
एनालिटिका ने न केवल अमेरिका चुनावों को प्रभावित किया अपितु इनकी सहयोगी संस्थाओं
द्वारा निजी डेटा के दुरूपयोग से यूरोपियन संघ के जनमत संग्रह के नतीजों में भी
फेरबदल की गयी. वाईली ने इसके लिए यूरोपियन
संसद के सामने विभिन्न सबूत भी पेश किये तथा स्पष्ट किया कि ब्रेक्सिट चुनाव
प्रचार कानूनों का उल्लंघन था.
22 मई को मार्क ज़करबर्ग द्वारा यूरोपियन यूनियन के सीनेटरों के सामने प्रत्यक्ष
रूप से कैंब्रिज एनालिटिका सम्बन्धित डेटा चोरी तथा यूजर्स निजता मुद्दों पर
फेसबुक के ढुल- मुल रवैये को लेकर एक मीटिंग की व्यवस्था की गयी थी. लगभग 90 मिनट तक चली इस बैठक के
दौरान 12 ब्रिटिश सीनेटरों ने ज़करबर्ग से बहुत से प्रश्न किये गए. 60 मिनट तक अबाध पूछे गये
प्रश्नों का उत्तर देने में उन्होंने केवल आधे घंटे का समय लिया, जो बहुत से सदस्यों को
अपर्याप्त लगा और उन्होंने इसका विरोध भी विभिन्न माध्यम से दर्शाया. पूछे गये
प्रश्नों का खाका ही कुछ इस प्रकार था कि ज़करबर्ग ने केवल कुछ ही सवालों के उत्तर
दिए और बाकी को अनदेखा कर दिया. ब्रिटेन
की कॉमन्स डिजिटल, कल्चर, मीडिया एंड स्पोर्ट सेलेक्ट कमिटी के
अध्यक्ष डेमियन कॉलिंस ने कहा कि
"दुर्भाग्य से सवाल पूछे जाने का फ़ॉरमेट ही कुछ ऐसा था कि ज़करबर्ग को अपनी
पसंद के हिसाब से जवाब देने का मौका मिला और उन्होंने हर एक विषय पर उत्तर देना
जरूरी नहीं समझा. "उन्होंने ट्वीट के माध्यम से भी ज़करबर्ग पर निशाना साधा.
असल में यूरोपियन राजनैतिक
समूहों के नेताओं ने सभी सवाल पहले रखे, जिन्हें फेसबुक संस्थापक द्वारा नोट कर लिया और
फिर बाद में अपनी सहूलियत के अनुसार उत्तर दिए. यूरोपियन सीनेटरस मेनफ्रेड वेबर, फ़िलिप लेम्बेर्ट्स, सैयद कमाल, गाए वेर्होफ्स्तादत, जेन फिल्लिप अल्ब्रेट आदि
द्वारा सत्र में पूछे गये बहुत से सवालों का बेहद संक्षिप्त स्पष्टीकरण ज़करबर्ग
द्वारा दिया गया. यूनियन के नेता इस तरीके से बेहद हताश दिखे और उन्होंने यह भी
कहा कि ज़करबर्ग ने जानबुझकर प्रश्नों के इस प्रारूप की मांग रखी थी, जिससे वह सही स्पष्टीकरण से
बच सकें.
यूरोपियन
संसद में गवाही का यह प्रारूप अमेरिकी संसद से काफी अलग था, जहां लगभग 10
घंटे
अमेरिकी सीनेटरों द्वारा थका देने वाले तीखे सवालों का दौर चला था. यहां फेसबुक फाउंडर को जवाब देने में काफी दिक्कत हुई थी, इसके विपरीत वें यूरोपियन
संसद के सम्मुख आराम से वहीं रटे रटाये जवाब देने में सफल रहे. हालाँकि ईयू के
अध्यक्ष एंटोनियो ताजिनी ने कहा कि ज़करबर्ग से सभी प्रश्नों के लिखित उत्तरों का
ब्यौरा जल्द ही लिया जाएगा.
वैसे तो फेसबुक संस्थापक
मार्क ज़करबर्ग अपने वर्षों पुराने बार बार गलतियां दोहराने के तरीकों और फिर माफ़ी
मांगने के लिए विख्यात हैं, हर बार सभी बिन्दुओं पर वें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से
अपनी बात रखते दिखते हैं. इस वर्ष भी डेटा चोरी मामले पर वह पहले अपने फेसबुक पेज
के माध्यम से, तत्पश्चात अमेरिकी सीनेटरों के सामने और अब हाल ही में यूरोपियन संसद के सामने
वें माफ़ी मांगते दिखे, परन्तु ऐसे कईं प्रश्न थे, जिन पर ज़करबर्ग ने कोई भी उत्तर देना जरुरी नहीं
समझा. आइये एक नजर डालें उन प्रश्नों पर :-
1. बेल्जियन
एमइपी फ़िलिप लेम्बेर्ट्स द्वारा पूछे गये
प्रश्न कि, क्या आप लक्षित विज्ञापनों की जद से बाहर निकल पाएंगे? तथा क्या फेसबुक वास्तव में
एक निष्पक्ष कंपनी है?
2. जर्मन
एमइपी मेन्फ्रेड वेबर द्वारा किया गया
सवाल कि, क्या फेसबुक एक मोनोपोली (एकाधिपत्य) है?
3. बेल्जियन
सदस्य गाए वेर्होफ्स्तादत के अनुसार, जीडीपीआर के अनुच्छेद 82 के अनुसार वह प्रत्येक
व्यक्ति जिसे सोशल मीडिया से कोई भी नुकसान पहुंचा हो, वह मुआवज़े का अधिकारी है, अपने ब्रिटेन के 1 मिलियन यूजर्स के डेटा का
गलत उपयोग होने दिया, आप किस प्रकार इसकी क्षतिपूर्ति करेंगे?
4. ब्रिटिश
सदस्य सैयद कमाल के द्वारा बार बार पूछा गया
प्रश्न कि, आप फेसबुक की शैडो प्रोफाइल्स से किस प्रकार निपटेंगे? क्या आपकी राय में फेसबुक
के गैर उपयोगकर्ताओं का डेटा बिना अनुमति संगृहीत करना नैतिक रूप से उचित है?
5. जर्मन
एमइपी एवं डेटा एक्सपर्ट जेन फिल्लिप अल्ब्रेट के प्रश्न, क्या आप फेसबुक और व्हाट्सएप के डेटा को पृथक रख पाएंगे?
इन सभी प्रश्नों से ज़करबर्ग
या तो बचते नजर आए, या फिर बेहद कम शब्दों में उन्होंने इन बिन्दुओं पर कोई
जवाब दिया. जैसे फेसबुक के गैर उपयोगकर्ताओं से सम्बन्धित प्रश्न के बारे में वें
केवल यही बोल पाए, "फेसबुक के समुदाय के लिए यह महत्वपूर्ण था कि
गैर-उपयोगकर्ताओं पर अचानक डेटा को बदलने से पहले वह डेटा रखें." ज़करबर्ग के
उत्तर देने के इस तरीके से यूरोपियन संसद में मौजूद सभी नेताओं को निराशा ही हाथ
लगी. अधिकतर का मानना था कि फेसबुक संस्थापक ने तोड़-मरोड़कर तथ्यों को पेश करने के
अतिरिक्त और कुछ नहीं किया.
सीएनबीसी को दिए गये एक इंटरव्यू में एनवाईयु के प्रोफेसर स्कॉट गैलोवे ने बताया कि, "इस मीटिंग को लेकर बहुत उम्मीदें थी, काफी प्रश्न मेरे दिमाग में थे, परन्तु इससे केवल मुझे हताशा ही मिली."
ब्रुसेल्स में यूरोपीय संसद
में इस सुनवाई में, विधायकों ने झूठे फेसबुक खातों की बढ़ती संख्या के बारे में
स्पष्टीकरण मांगा और पूछा कि क्या फेसबुक नए ईयू गोपनीयता नियमों का पालन करेगा, लेकिन कई लोग जुकरबर्ग के
उत्तरों की कमी से निराश थे. कईं विधायकों ने ट्वीट के माध्यम से अपनी नाराजगी
ज़करबर्ग और ईयू के अध्यक्ष एंटोनियो ताजिनी पर उतारी. यूरोपियन यूनियन के सदस्य फ़िलिप लेम्बेर्ट्स
ने भी अध्यक्ष की सवालों की प्रणाली को दोषपूर्ण बताया.
बहुत से ब्रिटिश कानूनविदों
ने माना कि यदि प्रश्न करने का तरीका यूएसए संसद की तर्ज पर होता तो ज़करबर्ग को
अपनी पसंद से प्रश्न चुनकर जवाब देने और समय के अभाव के बहाने बनाने का अवसर
प्राप्त नहीं होता. यूरोपियन संसद के सदस्य मेन्फ्रेड वेबर ने भी मार्क ज़करबर्ग
द्वारा दिए गये जवाबों को अनुपयुक्त बताया और साथ ही यह भी कहा कि फेसबुक डेटा
प्रकरण मामले में उनकी सफाई असंतोषजनक थी.
फेसबुक के संस्थापक ने हर
बार की तरह इस बार भी पुराने माफीनामे का बना बनाया ढर्रा ही यूरोपियन संसद के
सम्मुख पेश किया और साथ ही यूरोपीय देशों के सम्बंध में बड़ी बड़ी परियोजनाओं की
दलीलें व फेसबुक के सकारात्मक प्रभावों का वर्णन भी किया. अपनी साफगोई में ज़करबर्ग
ने बेहद कम शब्दों में ही फेसबुक के व्यापारिक दृष्टिकोण को उजागर करने की कोशिश
करते हुए यूरोपियन यूजर्स से माफ़ी की अपील की. उन्होंने अग्रलिखित तथ्य सामने रखे
:-
_ फेसबुक के द्वारा विगत कुछ वर्षों से उन टूल्स को रोकने के लिए पर्याप्त
प्रयास नहीं किया गया, जिनके द्वारा फेसबुक मंच पर उपयोग से अधिक दुरूपयोग किया
गया. फिर चाहे वें झूठी खबरें हो, चुनावों में विदेशी हस्तक्षेप हो या फिर कुछ डेवेलपर्स
द्वारा यूजर्स की गोपनीय जानकारियों का दुरूपयोग हो. फेसबुक ने अपनी जिम्मेदारियों
का व्यापक दृष्टिगोचर नहीं किया. यह एक बड़ी गलती थी और इसके लिए उन्होंने खेद
प्रकट किया.
_ यूरोप में फेसबुक के निवेश पर भी ज़करबर्ग ने चर्चा करते हुए
कहा कि 2020 तक फेसबुक पेरिस में एक आर्टिफिशियल अनुसंधानशाला, लन्दन में एक बड़ी इंजिनियर
की टीम तथा स्वीडन, आयरलैंड व डेनमार्क में डेटा केंद्र खोलकर व्यापार को बढ़ावा
देने जा रही है.
_ फेसबुक के बहुत से सकारात्मक लाभ अंकित करते हुए ज़करबर्ग ने कहा कि कईं बार
शरणार्थियों द्वारा फेसबुक का प्रयोग अपने देशों में सवांद के माध्यम के तौर पर
किया गया. साथ ही पेरिस, लन्दन, ब्रुसेल्स आदि में आतंकवादी हमलों के दौरान अपने प्रियजनों
की सुरक्षा के लिए लाखों यूरोपियन यूजर्स द्वारा फेसबुक की "सेफ्टी चेक"
फीचर का इस्तेमाल व्यापक रूप से किया गया.
_ उन्होंने टिपण्णी की कि फेसबुक के 2.2 अरब यूजर्स में से लगभग 40 करोड़ यूजर्स यूरोपियन देशों
से हैं, इसलिए हम युरोप के लिए प्रतिबद्ध हैं. मानव अधिकारों की महत्ता से लेकर तकनीकी
समुदायों के प्रति झुकाव की आवश्यकता आदि बहुत से ऐसे मूल्य हैं, जो फेसबुक यूरोपीय देशों के
साथ साझा करती है.
_ समाजवादी नेता उडो बुलमान के यह पूछे जाने पर कि फेक प्रोफाइल्स के माध्यम से
चुनावों में होने वाली फेरबदल को फेसबुक किस प्रकार नियंत्रित करेगी? ज़करबर्ग ने स्पष्ट किया कि
यूजर्स की निजी जानकारियों और फेक प्रोफाइल्स के मसले को लेकर फेसबुक कुछ नई
आर्टिफिशियल तकनीकों पर कार्य कर रही है, साथ ही विश्व भर में आगामी चुनावों को ध्यान में
रखते हुए विदेशी दखलंदाजी को फेसबुक मंच पर रोकने के लिए बहुत से कदम उठाए जा रहे
हैं.
मार्क ज़करबर्ग की इन
लुभावनी बातों को हालाँकि यूरोपियन सांसदों ने गंभीरता से नहीं लिया. क्योंकि उनका
मानना है कि फेसबुक केवल मौखिक बातों को ही नहीं दोहराएं बल्कि कुछ अच्छे विचारों
को धरातल पर भी उतारे. उनके इस भावपूर्ण भाषण का असर शायद कम ही देखने को मिला, जिसका कारण वस्तुतः पूछे
गये सवालों का उचित जवाब न दिया जाना रहा.
ईयू की फ्रांसीसी सदस्या ईवा जोली ने ज़करबर्ग पर टिपण्णी करते हुए कहा कि, "हमें फेसबुक से कुछ ठोस कदमों की अपेक्षा है ताकि अच्छे शब्दों के स्थान पर डेटा संरक्षण के मौलिक अधिकारों की गारंटी हो सके. यदि वह दुनिया भर के सभी फेसबुक यूजर्स के लिए ईयू मानकों को लागू कर पाएं तो यह यूरोप और सामान्य व्यक्तियों के हितों के लिए एक प्रेरक जीत के समान होगी."
अब देखना यह होगा कि फेसबुक
अपनी गलतियों से सबक लेते हुए क्या वास्तव में अपनी नीतियों में सख्त बदलाव करेगी
या फिर हमेशा की तरह अपनी प्रत्येक गलती (फेसस्मैश मुद्दा, न्यूज फीड से छेड़छाड़, बीकन विज्ञापन प्रणाली, वीआर गेम बुलेट ट्रेन का
फेसबुक पर डेमो इत्यादि) को भूलते हुए बार बार माफीनामे की प्रक्रियाओं को दोहराती
रहेगी. हाल फिलहाल देखें तो यूरोपियन सांसदों की असंतुष्टि से यही स्पष्ट हो रहा
है कि मार्क ज़करबर्ग अपने प्रयासों को लेकर ज़मीनी स्तर पर इतने गंभीर नहीं हैं.
गाए वेर्होफ्स्तादत के कहे गये शब्दों पर मनन करने योग्य हैं, कि ज़करबर्ग किस प्रकार याद रखें जाना चाहेंगे, बिल गेट्स और स्टीव जॉब्स के समानांतर एक इंटरनेट एक्स्प्लोरर के रूप में या फिर एक ऐसे असफल जीनियस के रूप में, जिसने हमारे प्रजातंत्रो का विध्वंश करने के लिए एक डिजिटल दैत्य का निर्माण किया?
कह सकते हैं कि फेसबुक द्वारा हर बार सब कुछ ठीक कर देने के कयास तो काफी लम्बे समय से चलते आ रहें हैं, परन्तु सही मायनों में, बेहतर स्पष्टीकरण के साथ ज़करबर्ग किस प्रकार यूजर्स के भरोसे को बनाए रखते हैं, यह अभी भविष्य की गर्त में ही छिपा है.