अलीगढ़ । अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) का धर्मशास्त्र संकाय अपने आप में अनोखा है। देश की यह पहली यूनिवर्सिटी है, जहां शिया और सुन्नी एक छत के नीचे पढ़ते हैं। मदरसा बोर्ड के छात्रों को यहां सभी धर्मों की शिक्षा दी जाती है। वेद, पुराण, गीता, महाभारत, बाइबिल के अध्ययन के बगैर डिग्री पूरी नहीं होती है। फैकल्टी के भवन की मस्जिद भी ऐतिहासिक है। आज के दिन ही यानी 27 दिसंबर 1918 में मस्जिद की नींव रखी गई थी।
धर्मशास्त्र संकाय (थियोलॉजी फैकल्टी) एएमयू के सबसे पुराने संकायों में से एक है। संस्था के संस्थापक सर सैयद अहमद खान ने सुन्नी व शिया थियोलॉजी के शिक्षण की एक साथ शुरुआत की थी। उन्होंने दारुल उलूम देवबंद के संस्थापक मौलाना कासिम नानोटवी के दामाद मौलाना अब्दुल्ला अंसारी को पहले ना•ामि-ए-दीनियत (व्यवस्थापक) नियुक्त किया था। 1893 से 1918 तक 25 साल तक उन्होंने जिम्मेदारी संभाली। 1960 में इसे संकाय का रूप दिया। संकाय न केवल सबसे पुराना है, बल्कि कई मायनों में खास भी है। यह भारतीय विश्वविद्यालयों में एकमात्र ऐसा संकाय है, जहां सुन्नी व शिया एक छत के नीचे धर्मशास्त्र पढ़ते हैं। स्नातक, स्नातकोत्तर व डॉक्टरेट की उपाधियां दी जाती हैं।
गीता, बाइबिल, पुराण पढ़े बिना नहीं मिलती डिग्री
धर्मशास्त्र संकाय में मदरसा बोर्ड के छात्र भी सभी धर्मों का तुलनात्मक अध्ययन करते हैं। धर्मशास्त्र संकाय के डीन प्रो. मोहम्मद सलीम के अनुसार शिया व सुन्नी कुरान व हदीस का अध्ययन अपने-अपने अनुसार करते हैं। सोशल साइंस व एनवायरमेंट की पढ़ाई एक जैसी करते हैं। यहां ङ्क्षहदुज्म, जैनिज्म, आदि का तुलनात्मक अध्ययन कराया जाता है। गीता, रामायण, वेद, पुराण पढ़ाए जाते हैं। इनके पढ़े बिना डिग्री नहीं दी जाती है।
बेमिसाल दोस्ती
धर्मशास्त्र संकाय जिस भवन में संचालित है, उसका निर्माण 1889 में छात्र अध्यक्ष रहे हबीबुल्लाह खान ने अपने मित्र विलायत हुसैन के नाम पर कराया था। इसका नाम विलायत मंजिल रखा गया। हबीबुल्लाह ने इस इमारत को 1920 में एएमयू को दान दे दिया। इससे पहले धर्मशास्त्र संकाय सर सैयद हॉल में चलता था। विलायत हुसैन ने दोस्ती की मिसाल देते हुए हबीबुल्लाह के नाम पर मैरिस रोड पर अपना आवास बनाया।
शिया व सुन्नी के अध्ययन की यह अनोखी फैकल्टी है। यहां कभी सुन्नी और शिया में झगड़ा नहीं हुआ। छात्रों को सभी धर्मों की शिक्षा दी जाती है। थियोलॉजी फैकल्टी के नाम से देश में यह एकमात्र फैकल्टी है। इसके विस्तार के लिए सरकार को प्रस्ताव भी भेजा है। इसमें अधिकतर ङ्क्षहदू धर्म के बारे में ही पढ़ाया जाएगा।
प्रो. मोहम्मद सलीम, डीन धर्मशास्त्र संकाय