कैंब्रिज एनालिटिका प्रकरण के बाद से निरंतर विवादित रही विशालकाय सोशल मीडिया कंपनी फेसबुक की मुश्किलें थमती नहीं दिख रही हैं. फेसबुक की उत्त्पति से लेकर अब तक जकरबर्ग अनेकों बार अनुचित फेसबुक नीतियों एवं यूजर्स के भरोसे को तोड़ने को लेकर क्षमायाचना कर चुके हैं. माफ़ी के सतत दोहरावों के बावजूद भी फेसबुक अपनी मनमाने व्यवहार के चलते वैश्विक तौर पर निंदनीय हो रही है और ताज़ातरीन खबरों के अनुसार फेसबुक ने हाल ही में शेयर मार्किट में अधिकतम नुकसान उठाया है, परन्तु इससे क्या वास्तव में फेसबुक को किसी प्रकार की आर्थिक हानि उठानी पड़ी है? यह गौर करने लायक बिंदु है. हालाँकि यूजर्स की विश्वसनीयता पर लगातार प्रहार से फेसबुक की ब्रांड वैल्यू पर प्रभाव पड़ा है, किन्तु यदि इसके बिजनेस मॉडल को देखा जाये तो यह नुकसान फेसबुक के लिए अत्याधिक बड़ा नहीं है.
26 जुलाई, 2018....यह दिन फेसबुक के इतिहास में ही नहीं, अपितु अमेरिकी स्टॉक
मार्केट के लिहाज़ से भी अविस्मरणीय रहा. फेसबुक के पूंजीकरण में हुई $120
बिलियन
की रिकॉर्ड गिरावट अमेरिकी स्टॉक मार्केट
इतिहास का एक ही दिन में किसी कंपनी को हुआ सबसे बड़ा नुकसान है. इससे मात्र एक
दिन पहले फेसबुक के वित्त अधिकारी डेविड वेनर ने अपने बयान में कहा था कि,
“दूसरी तिमाही में फेसबुक के सेल और यूजर ग्रोथ में कमी आई
है और साथ ही इस साल कंपनी के अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद नहीं है. इससे तीसरी और
चौथी तिमाही में कंपनी का मुनाफा कम हो सकता है.”
स्टॉक कीमतों में 19% से अधिक की गिरावट के साथ
फेसबुक का बाज़ार पूंजीकरण $508 मिलियन तक रह गया था और इतना ही नहीं शेयर्स का लगातार
गिरना जारी है. विगत 30 जुलाई को भी फेसबुक
के शेयर 2.1% और टूट गये और कहीं ना कहीं यह एक संकेत है कि केवल यूजर्स ही नहीं, अपितु इन्वेस्टर्स का भरोसा
भी फेसबुक ब्रांड से उठता जा रहा है.
फेसबुक शेयर्स का अमेरिकन
स्टॉक मार्केट में गिरना मात्र एक संयोग नहीं है, बल्कि सीईओ जकरबर्ग द्वारा दिए गये उस मीडिया
वक्तव्य का त्वरित परिणाम है, जिसमें उन्होंने बहुचर्चित चरमपंथी एलेक्स जोंस के आपतिजनक फेसबुक
पेजेस के साथ ही अन्य फर्जी वेब साइटों को फेसबुक से हटाने से इंकार कर दिया. रिकॉड
की मेजबान कारा स्विशर को दिए गये इंटरव्यू में ज़करबर्ग ने इन्फ़ोवार्स और चरमपंथी एलेक्स जोंस से जुड़े प्रश्नों पर अपना
मंतव्य रखते हुए होलोकॉस्ट (यहूदियों का विध्वंश) विरोधियों का उदाहरण देते हुए कहा कि,
"मैं भी यहूदी हूं और ऐसे लोगों का एक समूह है, जो इनकार करते हैं कि होलोकॉस्ट हुआ था. मुझे यह बहुत ही अपमानजनक लगता है, लेकिन दिन के अंत में, मैं सोचता हूं कि फेसबुक मंच को इन समूहों को हटा देना गलत होगा क्योंकि मुझे लगता है कि अलग अलग लोगों के दृष्टिकोण भी भिन्न होते हैं, मुझे नहीं लगता कि वे जानबूझकर गलतियां करते हैं."
कहा जा सकता है कि फेसबुक
संथापक ने इस प्रकार के विवादास्पद बयान देकर अपयश रूपी बैलों को खुद पर प्रहार
करने के लिए स्वयं ही आमंत्रित किया है. श्रीलंका, बांग्लादेश आदि देशों में धर्म विरोधी वातावरण
तैयार करने में सहायक बनने वाले मुद्दें को लेकर ज़करबर्ग ने कहा था कि वे इस पर
यथायोग्य कार्यवाही अवश्य करेंगे, तो वे इतने गैर-जिम्मेदार कैसे हो सकते हैं कि एक फ़िज़ूल
बयानबाजी से अपने ही वक्तव्यों पर प्रश्नचिंह खड़ा कर दें.
तकनीकी भीमकाय कंपनियों पर
प्रसिद्ध पुस्तक "द फोर :
द हिडन डीएनए ऑफ़ एमेजन, एपल, फेसबुक एंड गूगल" लिखने वाले लेखक एवं मार्केटिंग प्रोफेसर स्कॉट गैलोवे ने याहू को बताया कि,
“यह फेसबुक के प्रति एक दमित क्रोद्ध है, जो शेयर मार्किट में भारी गिरावट के रूप में विस्फुटित हुआ है. यह कुछ ऐसे है, जैसे आपका पति गैराज का दरवाजा न खुल पाने के लिए आप पर चिल्लाता है, परन्तु असल में उसके गुस्से का मुख्य कारण गैराज का दरवाजा नहीं, बल्कि कुछ और ही होता है.”
ज्ञातव्य है कि ज़करबर्ग के
लिए फेसबुक नियमावली को लेकर की गयी गलतियां कोई नया विषय नहीं है. उन्होंने
निरंतर ना केवल गलतियां की हैं, अपितु उन्हीं गलतियों का हर बार दोहराव भी किया है. तथ्यों
पर यदि बारीकी से गौर किया जाए तो फेसबुक को लेकर ज़करबर्ग ने कुछ विनाशकारी और
अक्षम्य गलतियां की हैं, जिन्होंने यूजर्स के विश्वास के साथ ही कंपनी की ब्रांड
वैल्यू को भी ठेस पहुंचाई है. लेखक
जोसफ रोम की पुस्तक हाउ टू गो वायरल एंड रीच मिलियंस के हवाले से बताते हैं कि स्टॉक मार्केट में बड़े घाटे के
मूल में ज़करबर्ग की अग्रलिखित भारी गलतियों का बड़ा हाथ माना जा सकता है :-
ज़करबर्ग की पहली गलती यह थी
कि उन्होंने फेसबुक के लिए एक शक्तिशाली और सुसंगत ब्रांड स्टेटमेंट बनाने का
प्रयास कभी नहीं किया, या फिर कह सकते हैं कि जिस तरह स्टीव जॉब्स ने एपल को लेकर “थिंक डिफरेंट” विज्ञापन अभियान
चलाया, ऐसा कुछ करने का प्रयत्न ज़करबर्ग द्वारा कभी नहीं किया गया.
यदि कैंब्रिज एनालिटिका
मुद्दें के बाद के हालातों पर गौर करें तो इस प्रश्न का सटीक उत्तर खुद ही सबके
सामने आ जाएगा. वर्ष 2009 से फेसबुक अपने ब्रांडेड स्टेटमेंट या आदर्श वाक्य के लिए
जानी जाती है, जो "मूव फास्ट एंड ब्रेक थिंग्स” है. मौजूदा
परिस्थितियों पर नजर डाले तो यह सही भी साबित हुआ है, ज़करबर्ग ने तेजी से आगे
बढ़ने की इच्छा से बहुत कुछ तोडा है, जिसमें खरबों यूजर्स और इन्वेस्टर्स का भरोसा भी शामिल है.
दिग्गज बनना एक दीगर बात है और व्यक्ति का पद अथवा गरिमा जितनी अधिक होती है, उसकी जिम्मेदारी भी कहीं
अधिक बढ़ जाती है और फिर आपके द्वारा की गयी छोटी से छोटी गलतियां भी बंदूक से
निकली गोली की तरह होती हैं, जो केवल विनाश का संकेत बनती हैं. जैसा कि अमेरिकन चुनावी
प्रक्रिया, ब्रेक्सिट आदि के रूप में फेसबुक द्वारा लाखों यूजर्स की गोपनीयता में सेंध
लगाकर किया गया.
ज़करबर्ग की दूसरी सबसे बड़ी
गलती यह है कि फेसबुक अपने यूजर्स के साथ मूल सिद्धांत यानि गोपनीयता पर खरा नहीं
उतरता है. यूजर्स अपने डेटा को सुरक्षित रखना चाहते हैं, किन्तु जैसा कि वर्ष 2010 में ज़करबर्ग ने कहा कि
उनका मानना है गोपनीयता अब "सामाजिक मानदंड" नहीं है. फेसबुक का
व्यवसाय मॉडल वस्तुतः दूसरों को आपकी जानकारी बेचने और विज्ञापनदाताओं के साथ
मुख्य रूप से अत्याधिक मुनाफे रूपी बिज़नेस को ध्यान में रखकर बनाया गया है. गौरतलब
है कि वर्तमान में फेसबुक अपने विज्ञापनदाताओं पर अपने उपयोगकर्ताओं की
तुलना में अधिक ध्यान केंद्रित कर रहा है और सिलिकॉन वैली से जुड़ा प्रसिद्द तथ्य
भी तो यही कहता है कि,
“यदि आप किसी उत्पाद के लिए भुगतान नहीं करते हैं तो निसंदेह आप स्वयं एक उत्पाद हैं.”
तीसरी बड़ी भूल ज़करबर्ग
द्वारा यह स्वीकार करने से इंकार कर देना है कि फेसबुक समाचार मीडिया का सम्राट बन
गया है. ज़करबर्ग ने उन रणनीतियों का निर्माण किया, जिनके द्वारा प्रतिस्पर्धियों को कुचलने की
समग्र तैयारी की गयी और फिर जब वही नीतियां फेसबुक पर उलटी पड़ने लगी तो ज़करबर्ग
उनसे नजर बचाते दिखे. फेसबुक "समाचार उद्योग का प्रमुख गढ़" बन गया, लेकिन ज़करबर्ग मीडिया की इस
विशालता के साथ आने वाली जिम्मेदारियों व विनियमों को कभी नहीं अपनाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने सभी अवैध
सूचनाओं और रूसी ट्रॉल्स से जुड़े फर्जी समाचारों के लिए धड़ल्ले से फेसबुक के द्वार
खोल दिए.
जब मार्च 2018 में डेटा उल्लंघन से जुड़ी
खबरें गरमाई, तो ज़करबर्ग के पास उचित उत्तरदायित्व ना लेने और चुप्पी साध लेने के अतिरिक्त
और कोई विकल्प नहीं था. जब एमएसएनबीसी ने एपल सीईओ टिम कुक से पूछा था कि यदि वह
मार्क जुकरबर्ग के स्थान पर होते तो क्या करते? इस पर उन्होंने जवाब दिया
था कि, "मैं कभी इस स्थिति में नहीं रहूंगा."
हाल ही में फेसबुक द्वारा
इन्फोवार चैनल के संस्थापक एवं ऑनलाइन घृणास्पद अवधारणा फैलाने वाले चरमपंथी
एलेक्स जोंस की निजी प्रोफाइल को फेसबुक से केवल 30 दिन के लिए
प्रतिबंधित किया गया, जबकि उनका ऑफिशियल चैनल अभी
भी ऑनलाइन चल रहा है, जिससे कोई अधिक प्रभाव नहीं पड़ा. परन्तु इससे जुड़ा
विवादास्पद बयान देकर और होलोकॉस्ट मुद्दे को उदाहरण के रूप में रखकर ज़करबर्ग ने
कंपनी के ब्रांड को प्रभावित करने में शायद ही कोई कसर छोड़ी हो. फेसबुक से जुड़ी
गहन से गहन समस्या को भी ज़करबर्ग ने बहुत हल्के में लेने की कोशिश की और यही वे आज
भी कर रहे हैं. स्मरण रहे कैंब्रिज एनालिटिका के पांव जमने में भी ज़करबर्ग का बड़ा
हाथ रहा, जिसे बाद में गलती बताकर वे क्षमायाचना करते नजर आ रहे हैं
यूजर्स की गोपनीयता संबंधी नीतियों पर उचित तौर पर काम नहीं
कर पाने के लिए और व्यर्थ के बयानों द्वारा विश्व भर में अपने ब्रांड की मार्किट
वैल्यू को प्रभावित करने के लिए ज़करबर्ग स्वयं जिम्मेदार हैं. अधिकतम मुनाफे की
चाह ने उन्हें अपने ही स्थापित किये सिद्धांतों से पीछे हटने पर विवश कर दिया, साथ ही लाखों यूजर्स का
भरोसा भी उनकी गलतियों के चलते स्वाहा हो गया.
*आज जीडीपीआर के चलते कंपनी
पर भारी जुर्माना लगाया जाना,
*कंपनी के शेयर्स का निरंतर टूटना और
*फेसबुक यूजर्स की संख्या में लगातार कमी आना (एक अनुमान के अनुसार मार्च से अब
तक फेसबुक यूजर्स की संख्या में 2.23 मिलियन की कमी दर्ज की गयी है),
इन सभी को फेसबुक की फिलहाल की मुश्किल परिस्थिति के कारणों के रूप में देखा जाए या फिर फेसबुक की अब तक की लापरवाही से उत्पन्न हुए परिणामों के रूप में...कहा नहीं जा सकता. फिलहाल तो यह देखना रोचक होगा कि अब ज़करबर्ग यूजर्स और इन्वेस्टर्स को रिझाने और टेक- मार्केट का साम्राज्य पुन: स्थापित करने के लिए कौन सी नई कहानी का निर्माण करते हैं.